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स्वामी प्रेमानन्द जी महाराज (सन् १९२० ई० - सन् २००५ ई०)


मानव को सत्य व साक्षात्कार का मार्ग दिखने के लिये हि जगत मॅ सन्तॉ व माहापुरुषॉ का आगमन समय - समय पर प्रभु की अहैतुकी कृपा से होती है| इस कङी मॅ परम पूज्य् श्री शिवानन्द जी को असीम श्रद्धा तथा आदर प्राप्त है|इनके ही शिष्य श्री स्वामी प्रेमानन्द जी भी उच्चकोटि के सन्तॉ मॅ से है |

बलरामपुर (उ.प्र.) के एक प्रतिष्ठित कायस्थ परिवार मॅ ७ मई   सन् १९२० ई० को जन्मे महावीर प्रसाद बाल्यावस्था से ही एकान्तप्रिय थे| इनको प्रायः ध्यानमग्न रहते देखा गया| किशोरावस्था मॅ वृन्दावन के सिद्ध महात्मा स्वामी शरणानन्द जी महाराज तथा अन्य उच्चकोटि के सन्तॉ के सानिध्य का इनके ऊपर गहरा प्रभाव पङा |

पूर्व आश्रमकाल मॅ एक मित्र से प्राप्त पुस्तक "दि डिवइन लाइफ" जुलाई १९४८ मॅ छपे लेख "सेलेबस आफ आनन्द कुटीर फारेस्ट यूनिवर्सिटी" ने इनको इतना प्रभावित किया कि ये सितम्बर १९४८ मॅ शिवानन्द   ऋषिकेश जा पहुंचे | वहां इनको परम पूज्य श्री शिवानन्द जी महाराज तथा अन्य संतजनॉ के दर्शन तथा आशीर्वाद प्राप्त करने का सौभाग्य मिला |गुरुदेव श्री शिवानन्द के मनोहारी व्यक्तिव तथा आश्रम के दिव्य वातावरण ने महावीर प्रसाद के हृदय की असीम गहराइयॉ को छू लिया तथा यही दिव्य स्पर्श आगे चलकर शिवानन्द आश्रम एवं परम पूज्य गुरुदेव से सदा के लिये परमयोग का आधार बना | ज्ञान पिपासा व प्रबल मुमुक्ष्त्व ने इन्हॅ १९५७ मॅ गृह त्याग करने को विवश कर दिया| १० अप्रैल १९५७ को ये स्वामी शिवानन्द जी की शरण मॅ ऋषिकेश आ गये | शिवानन्द आश्रम मॅ गुरुदेव ने इनको ब्रह्मचारी प्रेम चैतन्य नाम दिया | ब्रह्मचारी प्रेम चैतन्य आश्रम मॅ सेवारत रहते हुए माता भागीरथी के तट पर हिमालय पर्वत के बीहङ जंगलॉ मॅ कठोर तपस्या करते रहे |इनके तप व साधना द्वारा अर्जित अभूतपूर्वु उपलब्धियॉ से संतुष्ठ हो कर गुरुदेव शिवानन्द जी ने  सन् १९५८ की महाशिवरात्री को इनको संन्यास दीक्षा देकर स्वामी प्रेमानन्द के स्वरूप मॅ रूपान्तरित कर दिया | इसके बाद स्वामी प्रेमानन्द जी, चालीस दिन का परिव्राजक काल, संसार से प्राप्त घोर कष्ट, अपमान व पीङा का अनुभव प्राप्त करते हुए, बङे धीरज व साहस के साथ पूरा करने मॅ सफल हुए | परिव्राजक तपस्या काल मॅ इनहॅ एक बार पुलिस ने संदिध्य व्यक्ति मानकर तथा दूसरी बार भारतीय सेना ने सीमा पर एक पाकिस्तनी जासूस समझ कर पकङ कर तरह-तरह की यातना दी पर ये डिगे नहीं | इस तपस्या मॅ ये इतने दूर अनजाने मॅ निकल कि चालीस दिन के बजाय आश्रम लगभग तीन माह बाद लौट सके |

भक्तॉ के आग्रह पर गुरुदेव शिवानन्द ने इनहॅ आध्यात्मिक ज्ञान का प्रचार व प्रसार के लिये   भेजा | गुरुदेव के मिशन को लेकर पंजाब प्रांत मॅ अनेक स्थानॉ पर स्वामी प्रेमानन्द जी ने साधना शिविर तथा अखंड रामायण पाठ आयोजित कर धूम मचा दी एवं रामायणी बाबा के नाम से प्रसिद्ध हो गए | स्वामी शिवानन्द जी भी इनहे शेरे पंजाब कह कर पुकारने लगे |

 

 


स्वामी प्रेमानन्द जी के नेतृत्व मॅ सन् १९६४ मॅ एक अतिस्मरणीय डिवइन लाइफ कान्फरेन्स आयोजित किया गया था | तत्पशचात् स्वामी जी बारह वर्ष तक शिवानन्द आश्रम के सचिव  पद पर कार्य करते हुए इनके द्वारा जिस परिश्रम, लगन, निष्ठा व कुशलता से आश्रम की व्यवस्था का संचालन किया गया, वह आश्रम के संतॉ द्वारा आज भी याद किया जाता है |

गुरुदेव शिवानन्द एवं दिव्य जीवन संघ आध्यात्मिक ज्ञान की मशाल लेकर स्वामी जी ने दो बार (प्रथम ः नवम्बर १९७६ से मार्च १९८०, द्वितीय ः सितम्बर १९९३ से अप्रैल १९९४) विदेश जाकर, यू.ए., कनाडा सहित कई देशॉ का भ्रमण करते हुए विदेशियॉ एवं प्रवासी भारतीयॉ के ह्रदय को ज्ञान के प्रकाश से आलोकित किया |
 स्वामी शिवानन्द जन्म शताब्दी समारोह के द्विवर्षीय आयोजन (१९८५ - ८६)मॅ आयोजन प्रमुख की भूमिका मॅ इनके नेतृत्व मॅ चारॉ दिशाअऑ मॅ भारत भ्रमण पद-यात्रा कर गुरुदेव शिवानन्द  के दिव्य संदेशॉ सेवा, प्रेम, दान, भक्ति, भले बनो-भला करो, दिव्य जीवन जीने की कला तथा मानव जीवन के एक मात्र उद्देश्य "प्रभू साक्षात्कार" का अनेक प्रदेशॉ मॅ सघन प्रचार किया गया |

परम पूज्य स्वामी प्रेमानन्द के कुशल नेतृत्व मॅ दिव्य जीवन संघ मुख्यालय द्वारा प्रायोजित सन् १९९० से १९९९ तक चले 'दिव्य-दशक' कार्यक्रमॉ का उद् घाटन तत्कालीन उपराष्ट्रपति डा० शंकर दयाल शर्मा जी द्वारा ५ अगस्त १९९० को दिल्ली मॅ किय गया | इस दस-वर्षीय महती योजना मॅ अतयन्त गरीब तथा आदिवासी क्षेत्रॉ के अनेक गांवॉ मॅ भोजन, वस्त्र, आवास, चिकित्सा, जल आपूर्ती आदि संसाधनॉ को जुटा कर हजारॉ ह्जार आदिवासियॉ व गरीबॉ को शिक्षा व्यव्स्था देकर भगवत ज्ञान से प्रकाशित किया गया |

विश्वमयी - अन्तर्राष्ट्रीय दिव्य जीवन कान्फरेन्स (३० दिसम्बर १९९९ से २ जनवरी २०००)मॅ दिव्य दशक के समापन के अवसर पर परम पूज्य स्वामी प्रेमानन्द जी महाराज द्वारा देश विदेश से पधारे संतॉ व प्रबुध जनॉ की पांच हजार से अधिक भक्तॉ से युक्त सभा को संबोधित किया गया | स्वामी जी द्वारा बीती शताब्दी की प्रगति का आंकलन प्रस्तुत करते ब्रह्माण्ड एवं नियामक सत्त्ता की विराटता से परिचय देने के साथ -साथ ओजस्वी व प्रभावशाली शैली मॅ आगामी नव सहस्त्राबदी मॅ मानव को किस प्रकार का जीवन जीना चाहिए समझाया गया | स्वामी जी का अत्यन्त उपयोगी प्रवचन सुनकर देशी-विदेशी व अप्रवासी भारतीय धन्य-धन्य कर आविर्भूत व गद् गद् हो गए |

 


 
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